शनिवार, 21 अप्रैल 2012
tulasi -a medicinal plant
भारत में तुलसी का महत्वपूर्ण स्थान है। तुलसी के तीन प्रकार होते हैं- कृष्ण तुलसी, सफेद तुलसी तथा राम तुलसी। इनमें कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है। तुलसी में खड़ी मंजरियाँ उगती हैं। इन मंजरियों में छोटे-छोटे फूल होते हैं।
देव और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से तुलसी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मदेव ने उसे भगवान विष्णु को सौंपा। भगवान विष्णु, योगेश्वर कृष्ण और पांडुरंग (श्री बालाजी) के पूजन के समय तुलसी पत्रों का हार उनकी प्रतिमाओं को अर्पण किया जाता है।
तुलसी का प्रतिदिन दर्शन करना पापनाशक समझा जाता है तथा पूजन करना मोक्षदायक। देवपूजा और श्राद्धकर्म में तुलसी आवश्यक है। तुलसी पत्र से पूजा करने से व्रत, यज्ञ, जप, होम, हवन करने का पुण्य प्राप्त होता है। कहते हैं भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी अत्यंत प्रिय है।
स्वर्ण, रत्न, मोती से बने पुष्प यदि श्रीकृष्ण को चढ़ाए जाएँ तो भी तुलसी पत्र के बिना वे अधूरे हैं। श्रीकृष्ण अथवा विष्णुजी तुलसी पत्र से प्रोक्षण किए बिना नैवेद्य स्वीकार नहीं करते। कार्तिक मास में विष्णु भगवान का तुलसीदल से पूजन करने का माहात्म्य अवर्णनीय है। तुलसी विवाह से कन्यादान के बराबर पुण्य मिलता है साथ ही घर में श्री, संपदा, वैभव-मंगल विराजते हैं।
विदेशी चिकित्सक इन दिनों भारतीय जड़ी बूटियों पर व्यापक अनुसंधान कर रहे हैं। अमरीका के मैस्साच्युसेट्स संस्थान सहित विश्व के अनेक शोध संस्थानों में जड़ी-बूटियों पर शोध कार्य चल रहे हैं। "वल्र्ड-ऎड्स" के अनुसार अमरीका के नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में कैंसर एवं एड्स के उपचार में कारगर भारतीय जड़ी-बूटियों को व्यापक पैमाने पर परखा जा रहा है। विशेष रू प से तुलसी में एड्स निवारक तत्वों की खोज जारी है। मानस रोगों के संदर्भ में भी इन पर परीक्षण चल रहे हैं। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों पर पूरे विश्व का रूझान इनके दुष्प्रभाव मुक्त होने की विशेषता के कारण बढ़ता जा रहा है।
कैंसर पर कारगर तुलसी
एक अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो गई है कि अब तुलसी के पत्तों से तैयार किए गए पेस्ट का इस्तेमाल कैंसर से पीडित रोगियों के इलाज में किया जाएगा। दरअसल वैज्ञानिकों को "रेडिएशन-थैरेपी" में तुलसी के पेस्ट के जरिए विकिरण के प्रभाव को कम करने में सफलता हासिल हुई है। यह निष्कर्ष पिछले दस वर्षों के दौरान भारत में ही मणिपाल स्थित कस्तूरबा मेडिकल कालेज में चूहों पर किए गए परीक्षणों के आधार पर निकाला गया। दस वर्षों की अवधि में हजारों चूहों पर परीक्षण किए गए। उल्लेखनीय है कि कैंसर के इलाज में रेडिएशन के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला "एम्मी फास्टिन" महंगा तो है ही, साथ ही इसके इस्तेमाल से लो- ब्लड प्रेशर और उल्टियां होने की शिकायतें भी देखी गई हैं। जबकि तुलसी केपेस्ट के प्रयोग से ऎसे दुष्प्रभाव सामने नहीं आते।
पुदीना, तुलसी और कैंसर
कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी से लड़ने के लिए महंगी अंग्रेजी दवाइयां जो काम नहीं कर पाई, वह काम घर-घर में उपलब्ध पुदीना और तुलसी कर सकते हैं। चूहों पर किए गए परीक्षणों के बाद यह साबित हुआ है कि पुदीना और तुलसी के मिश्रण के लगातार सेवन से कैंसर पैदा होने की संभावना समाप्त होती है। राजस्थान विश्वविद्यालय में लगभग बीस सप्ताह तक चूहों के दो अलग-अलग समूहों पर यह प्रयोग किया गया। दोनों समूह के चूहों की त्वचा पर रसायन का लेप किया गया। एक समूह को तुलसी और पुदीना का मिश्रण भी पिलाया गया। चौंकाने वाला तथ्य यह रहा कि जिन चूहों की त्वचा पर सिर्फ रसायन का लेप किया गया था, उनके शरीर पर चार-पांच सप्ताह में ही बड़े-बड़े फोडे निकल आए। इसके अलावा जिन चूहों को तुलसी और पुदीना का मिश्रण पिलाया गया, उनमें फोड़े होने में ग्यारह से बारह मास लगे।
मच्छर नाशक
"बुलेटिन ऑफ बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया" में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार तुलसी के रस में मलेरिया बुखार पैदा करने वाले मच्छरों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. जी.डी. नाडकर्णी का अध्ययन बतलाता है कि तुलसी के नियमित सेवन से हमारे शरीर में विद्युतीय-शक्ति का प्रवाह नियंत्रित होता है और व्यक्ति की जीवन अवधि में वृद्धि होती है।
संक्रामक रोग और तुलसी
डॉ. के. वसु ने तुलसी को संक्रामक-रोगों जैसे यक्ष्मा, मलेरिया, कालाजार इत्यादि की चिकित्सा में बहुत उपयोगी बताया है।
थकान से राहत
रू सी अनुसंधान कर्ताओं ने यह पुष्टि की है कि तुलसी में अन्यान्य गुणों के साथ-साथ थकान दूर करने वाले गुण भी पाए जाते हैं। इसके नियमित सेवन से "क्रोनिक-माइग्रेन" के निवारण में मदद मिलती है।
-डॉ.अनुराग विजयवर्गीय
तुलसी के आयुर्वेदिक गुण –तुलसी को संजीवनी बूटी भी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में यह पूज्य है। तुलसी दो तरह की होती है। काली तुलसी व कपूर तुलसी (बेल तुलसी)तुलसी की उपयोगिता को देखते हुए आज इसकी खेती भी होने लगी है आजमगढ
मे बडे पैमाने पर तुलसी की खेती शुरू हो गई है जो देश विदेश मे भेजी जा रही है ।
तुलसी की उपयोगिता—
» तुलसी भोजन को शुद्ध करती है, इसी कारण ग्रहण लगने के पहले भोजन में डाल देते हैं जिससे सूर्य या चंद्र की विकृत किरणों का प्रभाव भोजन पर नहीं पड़ता।
» मृत व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, धार्मिक पद्धति के अनुसार उस व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो, ऐसा माना जाता है।
» तुलसी रक्त अल्पता के लिए रामबाण दवा है। नियमित सेवन से हीमोग्लोबीन तेजी से बढ़ता है, स्फूर्ति बनी रहती है।
» तुलसी के सेवन से टूटी हड्डियां शीघ्रता से जुड़ जाती हैं।
» तुलसी का पौधा दिन रात आक्सीजन देता है, प्रदूषण दूर करता है।
» घर बनाते समय नींव में घड़े में हल्दी से रंगे कपड़े में तुलसी की जड़ रखने से उस घर पर बिजली गिरने का डर नहीं होता।
» तुलसी की सेवा अपने हाथों से करें, कभी चर्म रोग नहीं होगा।
» खाना बनाते समय सब्जी पुलाव आदि में तुलसी के रस का छींटा देने से खाने की पौष्टिकता व महक दस गुना बढ़ जाती है।
» उपयोग में सावधानी बरतें-
» तुलसी की प्रकृति गर्म है, इसलिए गर्मी निकालने के लिये। इसे दही या छाछ के साथ लें, इसकी उष्ण गुण हल्के हो जाते हैं।
» तुलसी अंधेरे में ना तोड़ें, शरीर में विकार आ सकते हैं। कारण अंधेरे में इसकी विद्युत लहरें प्रखर हो जाती हैं।
» तुलसी के सेवन के बाद दूध भूलकर भी ना पियें, चर्म रोग हो सकता है।
» तुलसी रस को अगर गर्म करना हो तो शहद साथ में ना लें। कारण गर्म वस्तु के साथ शहद विष तुल्य हो जाता है।
» तुलसी के साथ दूध, मूली, नमक, प्याज, लहसुन, मांसाहार, खट्टे फल ये सभी का सेवन करना हानिकारक है।
» तुलसी के पत्ते दांतो से चबाकर ना खायें, अगर खायें हैं तो तुरंत कुल्लाकर लें। कारण इसका अम्ल दांतों के एनेमल को खराब कर देता है।
तुलसी सेवन का तरीका
» इसे प्रातः खाली पेट लेने से लाभ होता है।
» इसके पत्तों को या किसी भी अंग को सुखाना हो तो छाया में सुखाएं।
» फायदे को देखते हुए एक साथ अधिक मात्रा में ना लें।
» बिना उपयोग तुलसी के पत्तों को तोड़ना उसे नष्ट करने के बराबर है।
तुलसी से स्वास्थ्य लाभ पायें
» श्याम तुलसी(काली तुलसी) पत्तों का दो-दो बूंद रस 14 दिनों तक आंखों में डालने से रतौंधी ठीक होती है। आंखों का पीलापन ठीक होता है। आंखों की लाली दूर करता है।
» तुलसी के पत्तों का रस काजल की तरह आंख में लगाने से आंख की रोशनी बढ़ती है।
» तुलसी के चार-पांच ग्राम बीजों का मिश्री युक्त शर्बत पीने से आंव ठीक रहता है।
» तुलसी के पत्तों को चाय की तरह पानी में उबाल कर पीने से आंव (पेंचिस) ठीक होती है।
» अदरक या सोंठ, तुलसी, कालीमिर्च, दालचीनी थोड़ा-थोडा सबको मिलाकर एक ग्लास पानी में उबालें, जब पानी आधा रह जाए तो शक्कर नमक मिलाकर पी जाएं। इससे फ्लू , खांसी, सर्दी, जुकाम ठीक होता है।
» कभी-कभी किसी व्यक्ति में अधिक उत्तेजन (पागलपन) आ जाता है, ऐसे में लगातार तुलसी की पत्तियां सूंघे, मसलकर चबाएं, इसके रस को लें, सारे शरीर पर लगाएं, इससे पागलपन की उत्तेजना ठीक होने में लाभ मिलता है।
» तुलसी की 4-5 पत्तियां, नीम की दो पत्ती के रस को 2-4 चम्मच पानी में घोट कर पांच-सात दिन प्रातः खाली पेट सेवन करें, उच्च रक्तचाप ठीक होता है।
» कुष्ठ रोग में तुलसी की पत्तियां रामबाण सा असर करती हैं।खायें तथा पीसकर लगायें भी
» तुलसी के पत्तों का रस एक्जिमा पर लगाने, पीने से एक्जिमा में लाभ मिलता है।
» तुलसी के हरे पत्तों का रस (बिना पानी में डाले) गर्म करके सुबह शाम कान में डालें, कम सुनना, कान का बहना, दर्द सब ठीक हो जाता है।
» तुलसी के रस में कपूर मिलाकर हल्का गर्म करके कान में डालने से कान का दर्द तुरंत ठीक हो जाता है।
» कनपटी के दर्द में तुलसी की पत्तियों का रस मलने से बहुत फायदा होता है।
» 10-12 तुलसी के पत्ते तथा 8-10 काली मिर्च के चाय बनाकर पीने से खांसी जुकाम, बुखार ठीक होता है।
» तुलसी के सूखे पत्ते ना फेंके. ये कफ नाशक के रूप में काम में लाये जा सकते हैं।
» तुलसी के पत्तों के साथ 4 भुनी लौंग चबाने से खांसी जाती है।
» तुलसी के पत्ते 10, काली मिर्च 5 ग्राम, सोंठ 15 ग्राम, सिके चने का आटा 50 ग्राम और गुड़ 50 ग्राम, इन सबको पान व अदरक में घोंट लें तथा एक एक ग्राम की गोलियां बना लें। जब भी खांसी हो सेवन करें।
» तुलसी व अदरक का रस एक एक चम्मच, शहद एक चम्मच, मुलेठी का चूर्ण एक चम्मच मिलाकर सुबह शाम चाटें, यह खांसी की अचूक दवा है।
गले की समस्या
» तुलसी की हरी पत्तियों को आग पर सेंककर नमक के साथ खाने से खांसी तथा गला बैठना ठीक हो जाता है।
» यदि अधिक चोट लगी हो और अधिक खून बह रहा हो तो तुलसी के 20 पत्तों को पीसकर एक चम्मच शहद में मिलाकर चाटने से बहता खून रुक जाता है।
» गठिया- तुलसी के पंचाग (जड़, पत्ती, डंठल, फल, बीज) का चूर्ण बनाएं। बराबर का पुराना गुड़ मिलाकर 12-12 ग्राम की गोलियां बना लें। सुबह शाम गौ दूध या बकरी के दूध से 1-12 गोली खालें। गठिया व जोड़ों का दर्द में लाभ होता है।
» तुलसी व अदरक का रस 5-5 ग्राम की मात्रा मे सेवन करने से थोड़े ही दिनों में हड्डी में गैस की समस्या हल हो जाती है।
» जोड़ों में दर्द हो तो तुलसी का रस पियें।
» गला बैठने पर तुलसी की जड़ चूसें।
घाव
» तुलसी के पत्ते पीसकर जख्मों पर लगाने से रक्त मवाद बंद हो जाता है।
» तुलसी के रस को नारियल के तेल को समान भाग में लें और उन्हें एक साथ धीमी आंच पर पकाएं। जब तेल रह जाए तो इसे रख लें। इसे फोड़े, फुंसी पर लगाएं।
» तुलसी के बीजों को पीसकर गर्म करके घाव में भर दें लाभ होगा।
» तुलसी के सूखे पत्तों का चूर्ण बना कर घाव में भर दें, कीड़े मर जाएंगे।
» छाया में सुखाई तुलसी की पत्तियां इसमें फिटकरी महीन पीस लें, कपड़े से छानकर ताजे घाव पर लगाएं, घाव शीघ्र भर जाएगा।
» तुलसी तथा कपूर का चूर्ण घाव में लगाने से घाव शीघ्र सूख जाता है।
» तुलसी का तेल बनाएं – जड़ सहित तुलसी का हरा भरा पौधा लेकर धो लें, इसे पीसकर इसका रस निकालें। आधा कि. पानी- आ. कि तेल डालकर हल्की आंच पर पकाएं, जब तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर कर रख दें। तेल बन गया। इसे सफेद दाग पर लगाएं। इन सब इलाज के लिए धैर्य की जरूरत है। कारण ठीक होने में समय लगता है। सफेद दाग में नीम एक वरदान है। कुष्ठ रोग का इलाज नीम के जितने करीब होगा, उतना ही फायदा होगा। नीम लगाएं, नीम खाएं, नीम पर सोएं, नीम के नीचे बैठे, सोये यानि कुष्ठ रोग के व्यक्ति जितना संभव हो नीम के नजदीक रहें। नीम के पत्ते पर सोएं, उसकी कोमल पत्तियां, निबोली चबाते रहें। रक्त शुद्धिकरण होगा। अंदर से त्वचा ठीक होगी। कारण नीम अपने में खुद एक एंटीबायोटिक है। इसका वृक्ष अपने आसपास के वायुमंडल को शुद्ध, स्वच्छ, कीटाणुरहित रखता है। इसकी पत्तियां जलाकर पीसकर नीम के ही तेल में मिलाकर घाव पर लेप करें। नीम की फूल, पत्तियां, निबोली पीसकर इसका शर्बत चालीस दिन तक लगाताकर पियें। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलेगी। नीम का गोंद, नीम के ही रस में पीसकर पिएं थोड़ी-थोड़ी मात्रा से शुरू करें इससे गलने वाला कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है।
ज्वर
» तुलसी के पत्ते का रस 1-2 ग्राम रोज पिएं, बुखार नहीं होगा।
» तुलसी, काली मिर्च, दालचीनी, लौंग, अदरक कूटकर पीसकर एक ग्लास पानी में इतना उबालें कि आधा रह जाए तो उतार कर नमक चीनी में इच्छानुसार डालकर पीयें, फिर ओढ़कर सो जाएं।
» तुलसी के जड़ का काढा ज्वर नाशक होता है।
» तुलसी सौंठ के साथ सेवन करने से लगातार आने वाला बुखार ठीक होता है।
» तुलसी अदरक मुलैठी सबको घोटकर शहद के साथ लेने से सर्दी के बुखार में आराम होता है।
जहरीले जीव के काटने पर
» तुलसी पत्तों का रस उस स्थान पर लगाने से आराम मिलता है, सांप, ततैया, बिच्छू के काटने पर।
» तुलसी का रस शरीर पर मलकर सोयें, मच्छरों से छुटकारा मिलेगा। मलेरिया मच्छर का दुश्मन है तुलसी का रस।
» तुलसी के बीज खाने से विष का असर नहीं होता।
» -तुलसी की पत्तियां अफीम के साथ खरल करके चूहे के काटे स्थान पर लगाने से चूहे का विष उतर जाता है।
» किसी के पेट में यदि विष चला गया हो तो तुलसी का पत्र जितना पी सके पिये, विष दोष शांत हो जाता है।
अन्य लाभ
» तुलसी की माला पहनने से टांसिल नहीं होता।
» स्त्री रोग- मासिक धर्म, श्वेत प्रदर यदि मासिक धर्म ठीक से नहीं आता तो एक ग्लास पानी में तुलसी बीज को उबाले, आधा रह जाए तो इस काढ़े को पी जाएं, मासिक धर्म खुलकर होगा।
» मासिक धर्म के दौरान यदि कमर में दर्द भी हो रहा हो तो एक चम्मच तुलसी का रस लें।
» तुलसी का रस 10 ग्राम चावल के माड़ के साथ पिए सात दिन। प्रदर रोग ठीक होगा। इस दौरान दूध भात ही खाएं।
» तुलसी के बीज पानी में रात को भिगो दें। सुबह मसलकर छानकर मिश्री में मिलाकर पी जाएं। प्रदर रोग ठीक होगा।
» तुलसी के रस में शहद मिलाकर नियमित थोड़े दिनों तक लेते रहने से मेधा शक्ति बढ़ती है, यह एक प्रकार का टॉनिक है।
» तुलसी की पिसी पत्तियों में एक चम्मच शहद मिलाकर नित्य एक बार पीने से आप निरोगी रहेंगे, गालों में चमक आएगी।
» तुलसी के पत्तों का दो तीन चम्मच रस प्रातः खाली पेट लेने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
» पानी में तुलसी के पत्ते डालकर रखने से यह पानी टॉनिक का काम करता है
तुलसी भारतीय मूल की ऐसी औषधि है जिसका सांस्कृतिक महत्व है। यहाँ घर में इसके पौधे की उपस्थिति को दैवीय उपहार और सौभाग्यशाली समझा जाता है। भारत में पाई गई यह अब तक की सबसे महत्वपूर्ण और चमत्कारिक औषधि है।
तुलसी शरीर, मन और आत्मा की पीड़ा हरने वाली है। कहा जाता है कि तुलसी में दाह को कम करने, जीवाणुनाशक तथा मूत्रवर्धक गुण होते हैं, जो संक्रमण को दूर करने के साथ-साथ तनाव और अन्य बीमारियों के खिलाफ प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करती है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के मुताबिक तुलसी में बीमारियों को ठीक करने की जबर्दस्त क्षमता है।
यह सर्दी-जुकाम के प्रभाव को कम कर देती है और बुखार कम करने साथ मलेरिया, चिकन पॉक्स, मीजल्स, एन्फ्लूएंजा और अस्थमा जैसी बीमारियों को भी ठीक कर देती है। तुलसी खासतौर पर दिल की रक्त वाहिकाओं, लीवर, फेफड़े, उच्च रक्तचाप तथा रक्त शर्करा को भी कम करने में मददगार साबित होती है।
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स्वस्थ और सफेद दाँत पाने के लिए तुलसी और नींबू के रस को मिलाकर दाँतों की मालिश करें। यही रस चेहरे की काँति बढ़ाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। कान का तेज दर्द होने पर इसकी बूँदें रात को सोते समय कान में टपका लें।
तुलसी की पत्तियों का एक गिलास रस दिल के लिए टॉनिक का काम करता है। इसे रोज सुबह पीना चाहिए।
आँखों के संक्रमण यानी कंजक्टिवाइटिस से निपटने के लिए एक कटोरी में तुलसी की दो-तीन पत्तियाँ रात को भिगो दें। सुबह इससे आँख धो लें।
तुलसी - (ऑसीमम सैक्टम) एक द्विबीजपत्री तथा शाकीय, औषधीय पौधा है। यह झाड़ी के रूप में उगता है और १ से ३ फुट ऊँचा होता है। इसकी पत्तियाँ बैंगनी आभा वाली हल्के रोएँ सो ढकी होती है। पत्तियाँ १ से २ इंच लम्बी सुगंधित और अंडाकार या आयताकार होती हैं। पुष्प मंजरी अति कोमल एवं ८ इंच लम्बी और बहुरंगी छटाओं वाली होती है, जिस पर बैंगनी और गुलाबी आभा वाले बहुत छोटे हृदयाकार पुष्प चक्रों में लगते हैं। बीज चपटे पीतवर्ण के छोटे काले चिह्नों से युक्त अंडाकार होते हैं। नए पौधे मुख्य रूप से वर्षा ऋतु में उगते है और शीतकाल में फूलते हैं। पौधा सामान्य रूप से दो-तीन वर्षों तक हरा बना रहता है। इसके बाद इसकी वृद्धावस्था आ जाती है। पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं और शाखाएँ सूखी दिखाई देती हैं। इस समय उसे हटाकर नया पौधा लगाने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
इनमें ऑसीमम सैक्टम को प्रधान या पवित्र तुलसी माना गया जाता है, इसकी भी दो प्रधान प्रजातियाँ हैं-श्री तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी होती हैं तथा कृष्णा तुलसी जिसकी पत्तियाँ निलाभ-कुछ बैंगनी रंग लिए होती हैं। श्री तुलसी के पत्र तथा शाखाएँ श्वेताभ होते हैं जबकि कृष्ण तुलसी के पत्रादि कृष्ण रंग के होते हैं। गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, परन्तु अधिकांश विद्वानों का मत है कि दोनों ही गुणों में समान हैं। तुलसी का पौधा हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है और लोग इसे अपने घर के आँगन या दरवाजे पर या बाग में लगाते हैं।[1] भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों एवं उसकी उपयोगिता का वर्णन मिलता है।[2] इसके अतिरिक्त ऐलोपैथी, होमियोपैथी और यूनानी दवाओं में भी तुलसी का किसी न किसी रूप में प्रयोग किया जाता है।[3]
बच्चे को जुकाम है तो तुलसी खिलाइये
शनिवार, मार्च 31, 2012, 17:29 [IST]
तुलसी एक ऐसी वनस्पजति है जो धार्मिक हिन्दू[ समुदाय में बहुत ही महत्वतपूर्ण औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। बच्चेन, बूढे, औरते और आदमी सभी इसके सेवन से लाभ उठाते हैं। तुलसी जुकाम, खांसी, बुखार, सूखा रोग, पसलियों का चलना, निमोनिया, कब्जे और अतिसार सभी रोगों में चमत्काखरी रूप से अपना असर दिखाती है। अगर आपका बच्चाो भी किसी बीमारी से जूझ रहा है तो उसे तुलसी के पत्तेअ चबाने के लिए दें। आप यकीन नहीं मानेगें पर तुलसी किसी रामबाण से कम साबित नहीं होगी।
तुलसी के प्रयोग-
1. जिगर का बढना- जिगर बढने पर 10 ग्राम तुलसी के पत्तोंअ को 20 ग्राम ताजे पानी में डालकर उबाल लें। उबलने पर जब एक चौथाई पानी रह जाए तो उसे उतारकर छान लें। इसे सही मात्रा में 2 से 4 बार तक बच्चेन को पिलाएं। इसको पीने से जिगर का बढना या जिगर से संबधित दूसरे रोग समाप्तर हो जाते हैं।
2. जुकाम- जुकाम होने पर 5 ग्राम तुलसी के पत्तेत, 20 ग्राम बनफ्शा, 10 ग्राम मुलहठी को लेकर पानी के साथ उबालकर छान लें। फिर 10 ग्राम मिश्री के साथ शर्बत की तरह चाश्नी तैयार कर लें।
मात्रा- 1 चम्मनच उम्र और ताकत के अनुसार दें। इससे जुकाम, खांसी, उल्टीक आदि रोगों में लाभ होता है। सामान्यल ज्विर की हरारत भी दूर हो जाती है।
3. निमोनिया- बच्चोंह के निमोनिया, पसली चलना आदि रोगों में 10 ग्राम तुलसी के पत्तोंग के रस को , 6 ग्राम गाय के घी में मिला कर आग पर गुनगुना सा कर लें। दिन में 1 बार या 2 बार में दे सकते हैं। बुखार में इसे नहीं देना चाहिये क्यों कि इससे दस्तन हो सकते हैं। दस्तो हो तब भी इसे नहीं देना चाहिये। सुबह की पतली शिवाम्बुन के साथ 4 तुलसी के पत्तेह सेवन करना बहुत लाभकारी है।
. तुलसी सुलभ और निशुल्क औषधी
तुलसी सुलभ, सुगम और निशुल्क उपलब्ध होने वाली वह औषधी है जो आपके जीवन को निरोगी एवं आत्मा का का शोधन कर उसे पवित्र बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैः
हिन्दूओ द्वारा सदियों से देवता के रूप में घर-घर पूजे जाने वाला पौधा ‘‘तुलसी (Holy Basil)’’ है। पर बहुत ही कम लोग यह जानते है कि यह पौधा मात्र धर्म और आध्यात्मिक तौर पर ही पूज्यनीय नहीं है वरन् इसके अन्य जीवनदायी गुण भी है जो इस पौधे की महत्ता में चार चांद लगा देते है।
आध्यात्मिक महत्वः- तुलसी का पौधा हमारे लिए धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व का पौधा है जिस घर में इसका वास होता है वहा आध्यात्मिक उन्नति के साथ सुख-शांति एवं आर्थिक समृद्धता स्वतः आ जाती है, वातावारण स्वच्छ एवं शुद्ध हो जाता है। तुलसी के नियमित सेवन से सौभाग्यशालिता के साथ ही सोच में पवित्रता, मन में एकाग्रता आती है और क्रोध पर पूर्ण नियंत्रण हो जाता है। आलस्य दूर होकर शरीर में दिनभर फूर्ती बनी रहती है। देवता के रूप में पूजे जाने वाले इस पौधे ‘तुलसी’ की पूजा कब कैसे, क्यों और किसके द्वारा शुरू की गई इसके कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो उपलब्ध नहीं है परन्तु प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार देव और दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के समय जो अमृत धरती पर छलका, उसी से ‘‘तुलसी’’ की उत्पत्ति हुई। भगवान विष्णु, योगेश्वर कृष्ण और श्री बालाजी के पूजन में तुलसी पत्रों का उपयोग किया जाता है। तुलसी पूजा का दिन विष्णु पुराण के अनुसार कार्तिक नवमी को तुलसी विवाह के रूप में उल्लेख किया है किंतु अन्य धर्म ग्रंथों में प्रबोधिनी एकादशी को शुभ एवं फलदायी बताया गया हैं इसी दिन गोधूली बेला में भगवान सालिगराम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। लोग इस दिन तुलसी एवं भगवान सालिगराम का विवाह कर पूजा अर्चना करते है। यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है और मान्यता है कि इस दिन योगेश्वर भगवान विष्णु अपनी योगनिद्रा से जागते है और उसके बाद सारे शुभ कार्य करने शुरू किये जाते है।
औषधीय महत्व- औषधीय गुणों से परिपूर्ण पौराणिक काल से प्रसिद्ध ‘‘पतीत पावन तुलसी’’ के पत्तो का विधीपूर्वक नियमित औषधितुल्य सेवन करने से अनेकानेक बिमारिया ठीक हो जाती है। इसके प्रभाव से मानसिक शांति घर में सुख समृद्धि और जीवन में अपार सफलताओं का द्वार खुलता है। यह ऐसी रामबाण अवषधी है जो हर प्रकार की बीमारियों में काम आती है जैसे- स्मरण शक्ति, हृदय रोग, कफ, श्वास के रोग, प्रतिश्याय, खून की कमी, खॉसी, जुकाम, दमा, दंत रोग, धवल रोग आदि में चमत्कारी लाभ मिलता है। किडनी की पथरी में तुलसी की बत्तियों को उबालकर बनाया गया ज्यूस शहद के साथ नीयमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है। दिल की बीमारी में यह वरदान साबित होती है यह खून में कोलेस्ट्राल को नियंत्रित करता है।
बच्चों की आम बीमारियों जैसे सर्दी, बुखार, उल्टी दस्त आदि में तुलसी का रस लाभदायक है। यदि चिकनपॉक्स (माता) हो गया हो तो केसर के साथ तुलसी पत्र लेने से शीघ्र आराम मिलता है। तुलसी का रस आखों के दर्द, रात्रि अंधता जो सामान्यतः विटामीन ‘ए‘ की कमी से होता है के लिए अत्यंत लाभदायक है। तुलसी का पौधा जिस घर में हो वहा बैक्टिरिया जो की स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते है इन्हे पनपने नहीं देता।
सामान्य प्रयोग- (1) तुलसी की पॉच पत्तियॉं, 2 नग काली मिर्च का चूर्ण, रात को पानी में भीगी हुई 2 नग बादाम का छिलका निकालकर फिर उसकी चटनी बनाकर एक चम्मच शहद के साथ सेवन करें एवं लगभग आधा खण्टा अन्न-जल ग्रहण ना करे। (2). तुलसी के पत्तों को साफ पानी में उबाल ले उबाले जल को पीने में उपयोग करें। कुल्ला करने में भी इसका उपयोग कर सकते है। (3) 2-3 पत्तिया ले और छाछ या दही के साथ सेवन करें। बहुत सारी आयुर्वेदिक कम्पनियां अपने जीवनदायी अवषधियों में तुलसी का उपयोग करती है।
प्राकृतिक महत्वः- जिस घर में तुलसी का पौधा लहलहा रहा हों वहां आकाशीय बिजली का प्रकोप नहीं होता। तुलसी का पौधा जहां लगा हो वहा आसपास सांप बिच्छू जैसे जहरीले जीव नहीं आते। तुलसी के पौधे का वातावरण में में अनुकूल प्रभाव पड़ता है। हमारा प्रयास होना चाहिए की प्रत्येक घर में एक तुलसी का पौधा जरूर हो समाजसेवा का इससे अच्छा, सुलभता, सुगमता और निशुल्क उपलब्ध होने वाला और क्या उपाय हो सकता है।
(उक्त लेख स्वयं के अनुभव एवं विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिखा गया है, गंभीर बिमारियों में आयुर्वेदिक डॉक्टर के सलाह अवस्य लें)
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